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रचना - GeeT

रचना  - GeeT


दुखके ढेकीमें कुटानी करब
चिंताके जत्तामे पिसानी करब
मेहनत करब खुब अपन गाममे
मिथिलेमे जाक मेहमानी करब

खर्रा ढाकील पात खर्रब फुलबारीमे
झिझिया खेलब सलहेशक अगाडीमे
मिलक दीपो जरायब सगें इद दियारीमे
फुट कहियो हेतैनै कखनो  भैयारीमे
अपन पहिचानमे नै कहियो परेशानी करब

माजि झुटका बनायब सोन चौरी चाँचरमे
पानिक फूल मखान सुखायब मायक आँचरमे
सोनसन भोर आन राजा जत हर जोतैय
नजर गुजर भाइग जाइ बौवा आइखक काजरमे
खेल खेलब हम कबडी कबडी खेतमे पहलमानी करब


काम भेटतै खुब गाममे, जौँ सिखब अपन शीप
पानि भरले बासन चाही तेल भरले टीप
अपन दुनु पैर जमाके राखब जौ आङ्गनमे
पिछर हुवे चाहे चाल हुवे होयबनै अहाँ सिलिप ।
मिथिलामे रोजगाडी बढब, नै कखनो बैमानी करब ।

दिनेश रसिया
2073/4/2

गजल

गजल आगामें भीड़ देख लोग नुकाइ छै ।
पैसाके आगा प्रेम नै सुझाइ छै ।

लुच्चाके बातकी विद्वानों छै सनकल
बेरे बखतमे संसार चिन्हाइ छै ।

बेटा मरल त पुतहु बनल बिधबा,
अपनले बुरहोमे बरतोहार खोजाइ छै ।

टाँगल छै नेह सगरो खुटरी देबालमें
खीजे गहूमक सेतुवा पिसाई छै ।

सुचना पठेबाक लेनेछै जे ठेक्का
कहियोकाल ढौवाले ओहो बिकाइ छै ।
दिनेश रसिया 2073/3/30

***गीत****


***गीत****

विधवा कहिकS चुडी लहठी सब तोरलकै आइ
देखकS दुनियाके रीति हमर मोन कनैये भाइ ।

खेल्ते कुइदते नैन्हियेटामे कनिया बनलि
बनैत किशोरी सोनितनोर घुइट-घुइटकS पीबलि
सुखकS अनुभव करैस पहिने माँग उजरलै हाइ
देखकS ................

सीपकS सेनूर जखन उजरलै
पढिया साडीकS कफन चहरलै
सुख सेहेनता हमर सब अछियामे देलकS जराय
देखकS ......

विधिके विधिना, पिया छोडी गेली हमरा
सुरैत देख हमर बिगरै सबहकS जतरा
अपने घरे फेरोसं ओ बना देलकS पराइ
देखक............

छि मिथिलाके बेटी, प्रतिकार किए नै करै छी
दोसरके खुशी जोगब, भैर दुनियासं लडै छी
बिटे नै बचतैत कोपर कतसं लौबे गे माइ
देखक............

विधवा कहिकS चुडी लहठी सब तोरलकै आइ
देखकS दुनियाके रीति हमर मोन कनैये भाइ ।

दिनेश रसिया
२०६३,३,२१
सुझाबक आश रखने छी ।

===गजल===


===गजल===


जिनगीमे सगरो अछि काँट भरल रस्ता ।
परवाह कनिको नइ महंग होय आ सस्ता ।।

अपन सौँसे देवालमे सियाही पोतल छै,
देख हाल दोसरके ठहक्का माइर हस्ता ।।

गिरबा दोसरके खाइध खुनब माहिर छै
कि पता ओकरा आगा जाके अपने खस्ता ।।

बाढीके हिलकोर समैझ हेल गेलै पानिमे,
ढेहमे नइ रुकै पाइर, भभसीमे धस्ता ।।

पिब भेटे माँर नै, घर उपर चार नै
भुजा रोटी छोइर चाही माँछ दारु नस्ता ।।

सुइन बोली ओकर सबके काटैय बिसपिपडी,
बिना मतलबके बात ओ बेर बेर घस्ता ।।

सुइन तामस उठै जोर रसियाके बातपर
भाउ पता चलतै जखन जालमे ओ फस्ता ।

दिनेश रसिया
२०७३,३,३०

****गीत****

****गीत****


बनल एहि दुनियामे आदमी हैवान हो
अपन बेटा जोगाब, लैय हमर प्राण हो

दुधबा पियेलियै हम, जाहि मनुखके
कन्हियो नै बुझै रामा हमर इ दुखके
छुरी रेति रेति करै छै हलाल हो
अपन..........

भेटत भगवान जखन कहबै समधिया
रस्तामे भेटल रहै बुरही बकरिया
कानि कानि कशैत रहै, सुन छै दलान यौ
अपन........

करै छि मिनतिया इ सकल समाज के
माए बेटा एके होइ छै, दुनिया जहान मे
जाइन निमुखा नैह करु अत्याचार यौ
अपन बेटा जोगब नै लियौ केकरो जान यौ ।

दिनेश रसिया
२०७३–३–२३
सुझाब अवस्य देब .

...निरगुन...

...निरगुन...



जाइके छै पियाके महल
मोहके छै बेरीया परल
बिचेमे हंसा हमर भुलायल छौ हो राम ।

जनमक बेरिया हो रामा
पियाक सुधिया विसरलौ
गौवनाके बेरिया याद सतावै हो राम ।हो हो हो

एक त बयस मोर पाञ्चम
रंगल चुनर रंग आठम
ताहि पर रतिया लागै भयावन हो राम । हो हो हो

सासु जी अघोर निन सुतै
ननदी के निनियो ने टुटै
आ पियाके कहरिया आयल दुवारे हो राम । हो हो हो

कोइ हमर गोरबा जे पकडै
कोइ जन्जिर झिन्झिर बीच जकडै
कोइ हमर गर्दैन करै हलाल हो राम ।हो हो  ।हो हो हो

✍दिनेश रसिया
लहान,मिथिला( नेपाल
२०७२–३–२३

#कविता #जीनगीक बाटमे


#कविता#जीनगीक बाटमे


नचबै छै जिनगी,
तैँ हमरो नाचS परतै ।
लहास परल भूँभूँर आइगमे,
अछियामे फेर आँचS पडतै ।।

जीवन कखनो मरुभूमि छै,
कखनो जोतल खेत ।
मरुभूमिमे गाछ लगा,
खेत फेरो गजारS पडतै ।।

जीवनमे मृत्यु सत्य थिक,
ओहमे सत्य बुढापा ।
जिवनक अहि खेलके,
कखनो उसारS पडतै ।।

माइ बाबु वा अर्धाङ्गनी
कि बेटा कि बेटी ।
एक दिन नैया बीच भँवर सS
असगरे गुजारS पडतै ।।

ऐलौ खाली हाथ एत
जायब किछ नै लधने ।
कए किछ निक करम
जीनगी धन्य बनाबS पडतै ।।

#दिनेश रसिया
२०७३,३,२१

===गजल===

===गजल===


हम कटहरके कमरी आ अहाँ कुवा छी ।
जोखबतs अहाँ पसेरी हम लाबादुवा छि ।

जीनगी आइ बाचल यS हमरेसं अहाँक,
हम फेकल केथरी अहाँ सियल नुवा छी ।

फाडी मोन हमर आइ आमिल दS दुधमे,
हम  घोंटल घोर आ आहाँ प्रेमक खुवा छी ।

हमरे सs पुरल सब अहाँ के मनोरथ
अहाँ मोनक मालिक आ हम बिलटुवा छी ।

तैयो अहिक खुशी चाहैयS अखनो 'रसिया'
अहाँ बनियौ हर आ हम ओकर जुवा छि ।

दिनेश रसिया
सरल वार्णिक बहर
२०६३,३,१९

सुझावक लेल सादर आमन्त्रित छी ।

कविता

Dinesh Rasya 
कविता
=====

कहतौ कविता
सुन्तौ कविता
अपन शब्दक जालमे
बुन्तौ कविता

सिङ्गारतौ कविता
विगारतौ कविता
अखारक कादो थालमे
लथारतौ कविता

मारतौ कविता
तारतौ कविता
जीवनके हर क्षणमे
सुधारतौ कविता

पसारतौ कविता
उसारतौ कविता
माइटक थाल जका
खिचारतौ कविता

पढेतौ कविता
लिखेतौ कविता
जीवनक गुणा भाग
सिखेतौ कविता

हसेतौ कविता
कनेतौ कविता
बचपनके सब याद
दिएतौ कविता

हरेतौ कविता
जितेतौ कविता
मरला उपरान्त फेरो
जिएतौ कविता

लडतौ कविता
नैडरतौ कविता
मुस्किल तोहर हमर
हटेतौ कविता

दिनेश रसिया
२०७३ ३ १८

{बस ओहिना}

++++गजल++++

Dinesh Rasya

++++गजल++++


फुल सटल रहैछै काँट लगाके ।
पानि बहबो करैछै बाट लगाके ।

बाँसक पत्ता आ कर्ची जोगाब सs निक,
पुरा बिटेके घेर लियs टाट लगाके ।

इ जिनगीमे राइत भोर हेबे करै अछि,
सब तरहक आनन्द लियs खाट लगाके ।

आनबै तs भोर हेतै  मिथिलोमे मीत,
नबतुरियोके चला दियौ लाट लगाके  ।


देख रिती समाजक मोनमे भोकैए सूल
इज्जत बेच रहल लोक एत हाट लगाके ।

झुठे स्वाङ्ग धेने छी ,खार बना काम के
कारी कम्मर खिचै छी अहाँ घाट लगाके ।

अहाँ कुम्हरा आ चिकनी माइट रसिया
अहाँ बर्तन बना लिया पाट लगके ।

Dinesh Rasiya 2073/3/17