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प्राकृति आ प्रम्पराप्रति प्रेम, सद्भावक प्रतीक पावैन “मधुश्रावणी”



“साउन माँस विसहरी उगल नव चाँद”
“ राम घरे–घरे विषहरी लेली प्रवेश”
“ छोटी अँगनमा विषहरी बहुत पसारी ऽ ”
“ राम ताही अङगनमा  विषहरी खेलै जुवासारी”




जेहन मैथिली कर्णप्रिय लोकगीत सबसँ एखन मिथिलाक  घर आँगन सोहाओन भ रहल अछि ।
     विशेषक मिथिलाञ्चलके नवविवाहिता मिथिलानी सव हर्सोउल्लासके सँग मधुश्रावणी पावैन मना रहल छैथ ।
      साउन कृष्णपञ्चमीसँ सुरु भ क ऽ साउन शुक्ल द्वितिया धैर १५ दिन तक मनवअवला मघुश्रावणी पावैनमे विशेष कऽ शिव–पावर्ती  आ हुनकर पुत्री के रुपमे विषहरा –नाग नागिन ) के पूजा , मनमोहक लोक कथा सुइनक मनाओल जाइत अछि ।
        लोक कथा शिव–पावर्तीके गृहस्थ जीवन पर आधारित भेलाके कारणे नवविवाहिता के लेल कुशल गृहस्थी चलवैके प्रेरणा समेत दैत अछि । इ पाबैन विशेष क ब्राहमण, क्यास्थ, सोनार, देव जातीके नवविवाहिता महिलासब मनबै छैथ ।
गाँव–टोलके नवविवाहिता साज–श्रृङगार कऽ एक ठाम जमा भऽ बटगवनी, बरमासा, छमासा, चौमासा, लोकगीत गावैत मन्दिर, वाग–बगैचामे फूल लोढअ जाइ के दृश्य अती मनमोहक होइत अछि , इ पाबैन अवधि भैरि ।
विषहरा (नाग–नागिन) के पसन्द आवैवला विभिन्न मmार पात फूलसँ एक ठाम जमा भक पवनैतिन सब फूके डाली साजाबैत नचारी आ विभिन्न लोक गीत नाद गावैत छैथ । ओहे लोढल फूल आ मmाँर पात सँ दोसर दिन  विषहैरके पूजा कैल जाइत अछि ।
     जनकपूरके डेवडिहा के राधा मmा (हाल लहान –७ मे रहि रहल ) कहै छैथ “विषहाराके दुध लावा मधुश्रावनी पावैन  भैर चढेलासँ साँप किरा सँ बाल बच्चा आ पत्तिके रक्षा हाई के विश्वास रहल अछि । ओ कहै छैथ पवनैतिन विषहाराके दुद्य लावा वाइसफूलँ पूजा केलासँ आ गौरीके पूजा केलासँ सुहाग बढैके, पति दृघायु होई के विश्वास रहल अछि । ”
पावैन अवधि भैर यानि १५ दिन तक सासुर सँ आयल समान सब प्रयोग करैेत छैथ । ताहि हेतु पञ्चमी यानी पाबैनके पहिल दिन सासुर पक्ष सँ १५ दिन तकके सब समान विशेश कऽ के खाइके समान पडबके प्रमपरा रहल अछि ।
 राधा मmा कहैत छैथ “ एहन विद्य व्यवहार सँ नवविवाहिता के नयाँ सम्बन्ध जुडल सासुर पक्षसँ प्रेम आ सदभावमे प्रगाढता लाबैत अछि । ”
“साउन महिनाके हरियर वातावरण, कारी मेघ, बर्षाके मmरी , नवविवाहिताके श्रङगार लगायत मो लोभाववला विद्य व्यवहार सँ विवाहक नया बन्धनमे बन्हल युगल जोडीके प्रेम बढबैमे महत्वपूर्ण भूमिका खेलैत अछि इ पाबैन । तैह हेतु कतेको दुर रहलो पर पति इ पाबैनमे गाम आबैत छैथ । ”
विशेष क मधुश्रावणी पावैन नैहर मे मनवै के  प्रम्परा रहल पर व्यस्तताके कारणे सासुरेमे मनवैके प्रचलन बढल अछि । पावैनके अन्तिम दिन पूजापाठ सम्पन्न कऽ टेमी दागनाइके परम्परा रहल अछि । सिरहा माडरके राजकुमारी मmा कहै छैथ टेमी दनगनाई महिलाक अग्नी परिक्षा स्वरुप हाइत अछि । दुनु घुँडा आ पैरमिलाक चाइरर ठाम टेमी दायल जाइत अछि । एक ठाम या तीन ठाम फोका एनाइ शुभ मानल जाइत अछि । फोका जतेक पैघ होइया पति पतनी कऽ प्रेम प्रगाढ आ पति दृघायु हाइके मान्यता रहलो पर समयके सापेक्ष इ विद्य–व्यवहार के कठोरता कम क्याल जा रहल अछि से कहैत छैथ राजकुमारी मmा । टेमी दागअ के परम्परा निभाए रहल छि मुदा आब बहुतो ठाम आइगके टेमी नै  दऽ कऽ चंदन लगा कऽ शीतल टेमी दै के प्रचलन शुरु भ गेल ओ बतबैत छैत ।
समग्र मिलाक संसारमे रहल सम्पूर्ण जीव प्रती प्रेम, सँगी, साथी, समाजमे सदभाव, विवाहित नयाँ जोरीके अटुट सम्बन्ध बान्हैमे महत्वपूर्ण भूमिका खेलैत अछि पाबैन “मधुश्रावणी“

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