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गीत


स्वार्णिम युग निर्माण करअ लेल,
डेगआगा बढाउ मिता ।
इतिहास बनत अपनैह रचने,
गीत एकैहटा गाउमिता ।

सीता सलहेश और अयाची
नाम धरा आगा बढू ।
अपनैहजलू, अपनैह तपू
अपनैहसं स्वर्ण सिंहासन गढू ।
छि रथ अहाँ मिथलेशके
से जनजनके बताउमिता  ।

सागर अहिकेर पाउमे,
हिमालयके शिरमे पाग अछि ।
उज्जवल करी परिधानके,
समयधारके इ माग अछि ।
विद्यापतिके पौत्र छि से
से नाम नहि नुकाउ मिता ।

गगन मण्डल भू–धरा
पावन भूमि मधेश ऐ
मिथिलाक गौरब भूमी जे
से कहा रहल विदेश छै
मायक छातीपर चिरल
रेखाके अहा मिटाउ मिता ।
२०७४–२–४
Dinesh Rasya