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।। गजल ।।

     
आखर आखर जोइर जोइर क बना लिय दु पाति ।
हरियर डाइरपर बैसल सुगा गाबे नित् पराती ।।

सोहर,सम्दाउन, लग्नी झिझिया पसरल कोनेकोन,
अपन संस्कृति जोगाब मिता बाइर लिय एक बाती ।।

निरिह बनल छै समाज एत् दोसरके व्यवहारसं,
छोरु उच निचके भेद, बैन जाउ सब मैथिल जाती ।।

उपर हिमालय, निचा गंगा , कोशी कमला आ बलान
बनु अभियानी अहुँ भद्री, कारिक,लोरिकके भाती ।।

बुद्धि, विवेक, भाषा आ संस्कृति, सभ्यतामे धनिक हम
नबका चदैर पेन्हकs जग्बै खोइल कs पुरणा गाती ।।

सरल वार्णिक बहर २०,

दिनेश रसिया, लहान २०७३,२,१८

।। कजरी ।।




कोयलिया कुहु कुहु गीत सुनाबे
हमरो हिया हुलसाबे ना २
गे बहिना हिया हुलसाबै ना
पपिहरा पिया पिया कहिके जगाबे
हमरो मन तरसाबै ना
कोयलिया ......

एक त राजा बसन्तक मौसम
बहके इ मनमा ना २
दुजे बैरीन पियाके सपनमा २
आगी जरबे पवनमा ना
कोयलिया कुहु......
हमरो ......

दिन भरि काजमे थाकल देहिया
टुटै इ शरीरिया ना  २
रातिक नैना नेह निहारै २
आबै नै निन्दिया ना
कोयलया .....
हमरो ....

ब्यर्थे बितै इ हमरो जीबन
बुझियौ बिवस्ता ना २
अपने जौ परदेश रहब यौ २
कोन काजल देहिया ना
कोयलिया .....
हमरो .....

दिनेश रसिया २०७३,२, १८ लहान

गजल



कनकनीमे ठरल पाइन इन्हेर नै भ जाइ ।
गरिबक घरमे कही कतौ भोर नै भ जाइ ।।

मुह त सिबक रखनैये छै सोसकसब,
सियल मुह फेरसं कही जोर नै भ जाइ ।

एक साँझ भुखले रहै छि मिता अखनो हम,
धियापुताक दशा देख मनकही अघोर नै भ जाइ ।

अपन बात राखैयोके स्वतन्त्रता नै देखै छी,
स्वतन्त्रताले माहुुरसन कही तिलकोर नै भ जाइ ।

ध्यान देबै यौ गौँवासब रसियाके बात पर,
मेहनतके फल फेरो कही घरक चोर नै ल जाइ ।
२०७३, २, ७

गीत



पियाजी बसै छैथ जाके बिदेश
दुर्गति कहु कोना भेजु  सनेश
पिया जीबसै छैथ ......


पापी पपिहा  तन मन झक्झोरै
पियाके शब्द सुनअ मन हिलकोरै
सुधि नइ देहक, भाबे नहि भेष
दुर्गति कहु कोना भेजु  सनेश
पिया जीबसै छैथ ......


झरिगेल आम, गुजरि रहल महुवा
सोभै नहि टिकुली , गहना नौउवा
रातिके छातीमे फाटैये कुहेश
दुर्गति कहु कोना भेजु  सनेश
पिया जीबसै छैथ ......


छोरु पिया छोरु धनकेर आशा
साग खायब,रहब, हृदय पास
लोग बैध पुरा करथि महेश
दुर्गति कहु कोना भेजु  सनेश
पिया जीबसै छैथ ......

दिनेश रसिया २०७३,२,६,5