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।। गजल ।।

     
आखर आखर जोइर जोइर क बना लिय दु पाति ।
हरियर डाइरपर बैसल सुगा गाबे नित् पराती ।।

सोहर,सम्दाउन, लग्नी झिझिया पसरल कोनेकोन,
अपन संस्कृति जोगाब मिता बाइर लिय एक बाती ।।

निरिह बनल छै समाज एत् दोसरके व्यवहारसं,
छोरु उच निचके भेद, बैन जाउ सब मैथिल जाती ।।

उपर हिमालय, निचा गंगा , कोशी कमला आ बलान
बनु अभियानी अहुँ भद्री, कारिक,लोरिकके भाती ।।

बुद्धि, विवेक, भाषा आ संस्कृति, सभ्यतामे धनिक हम
नबका चदैर पेन्हकs जग्बै खोइल कs पुरणा गाती ।।

सरल वार्णिक बहर २०,

दिनेश रसिया, लहान २०७३,२,१८

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