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गजल



कनकनीमे ठरल पाइन इन्हेर नै भ जाइ ।
गरिबक घरमे कही कतौ भोर नै भ जाइ ।।

मुह त सिबक रखनैये छै सोसकसब,
सियल मुह फेरसं कही जोर नै भ जाइ ।

एक साँझ भुखले रहै छि मिता अखनो हम,
धियापुताक दशा देख मनकही अघोर नै भ जाइ ।

अपन बात राखैयोके स्वतन्त्रता नै देखै छी,
स्वतन्त्रताले माहुुरसन कही तिलकोर नै भ जाइ ।

ध्यान देबै यौ गौँवासब रसियाके बात पर,
मेहनतके फल फेरो कही घरक चोर नै ल जाइ ।
२०७३, २, ७

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