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गीत


स्वार्णिम युग निर्माण करअ लेल,
डेगआगा बढाउ मिता ।
इतिहास बनत अपनैह रचने,
गीत एकैहटा गाउमिता ।

सीता सलहेश और अयाची
नाम धरा आगा बढू ।
अपनैहजलू, अपनैह तपू
अपनैहसं स्वर्ण सिंहासन गढू ।
छि रथ अहाँ मिथलेशके
से जनजनके बताउमिता  ।

सागर अहिकेर पाउमे,
हिमालयके शिरमे पाग अछि ।
उज्जवल करी परिधानके,
समयधारके इ माग अछि ।
विद्यापतिके पौत्र छि से
से नाम नहि नुकाउ मिता ।

गगन मण्डल भू–धरा
पावन भूमि मधेश ऐ
मिथिलाक गौरब भूमी जे
से कहा रहल विदेश छै
मायक छातीपर चिरल
रेखाके अहा मिटाउ मिता ।
२०७४–२–४
Dinesh Rasya

गजल

गजल
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ओकरा ताकैत रही हम आ ओ ताकैत रहे हमरा ।
छुछे अपसियात रही झामर भगेल देहक चमरा ।

एक त बर्ष दिनके पाबैन उपरसं फुलवारीक भीड
फुलमे भरल सुगन्ध अनेक लौटैत देखलौ भँवरा ।

सिखल सिखायल नै देखल देखायल रुप हुन्कर
पछवरिया हावा देखैते लागल खटगर अमरा ।

बाह्र बिध्हाक रहे ओकर मोनक परती
धुर कट्ठे रहे हमर मोनक कमरा ।

इनकलाब केलक रसिया ओकर प्रेममे
सिधासाधा रही आब लोग बुझे बमरा ।
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दिनेश रसिया
२०७३–१२–२४
+++गजल+++
बीत बीत पर पाप एत, डेग डेग पर काँट छै ।
बौका बन्ल लोग सब, जोरगरहेके साँठघाँट छै ।
बेलन, लेहिया औ कराही चुल्हीपर अडयौने
भुखल दुल्ही नै बिछौने ताइक रहल बाट छै ।
झुल्नी पर चिलहारैत चिल्का, सापुत नै मुहके
दु–टघार दुध लेल मायक छाती खोँट छै ।
सुलीपर टाङगल चिरै तोइर रहल बपरहाइर
जानक मोजर किछु नै सब किछु बनल नोट छै ।
आब रसिया करतै कि कोनो जोगार
बीच घरमे भीत बनल भायक एगो फाँट छै ।
दिनेश रसिया २०७३–११–१२

+++गजल+++

+++गजल+++
हमरे चिताक आइगमे अपन गहना बना लिहे ।
नेहक भिजल नोरसं अपन हृदय कना लिहे ।

हमर एके सेहन्ता खुब राज करै तू
छातीप भला राइख हमर ना जना लिहे ।

हमर सिनेह बाँतर हौ तोराले जखन,
तुलसीक गाछ रोपल हमर सारा खना लिहे ।

पागल छियौ कम तोहर नेहक फिराकमे
परती परल मोन कनी कादो सना लिहे ।

पिपलके निचा फेकल दुलफीके फूलसन
भिजौ जखन भितर आब मोनके मना लिहे ।

दिनेश रसिया
२०७३–११–११