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गजल

गजल
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ओकरा ताकैत रही हम आ ओ ताकैत रहे हमरा ।
छुछे अपसियात रही झामर भगेल देहक चमरा ।

एक त बर्ष दिनके पाबैन उपरसं फुलवारीक भीड
फुलमे भरल सुगन्ध अनेक लौटैत देखलौ भँवरा ।

सिखल सिखायल नै देखल देखायल रुप हुन्कर
पछवरिया हावा देखैते लागल खटगर अमरा ।

बाह्र बिध्हाक रहे ओकर मोनक परती
धुर कट्ठे रहे हमर मोनक कमरा ।

इनकलाब केलक रसिया ओकर प्रेममे
सिधासाधा रही आब लोग बुझे बमरा ।
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दिनेश रसिया
२०७३–१२–२४

1 comments:

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