स्वार्णिम युग निर्माण करअ लेल,
डेगआगा बढाउ मिता ।
इतिहास बनत अपनैह रचने,
गीत एकैहटा गाउमिता ।
सीता सलहेश और अयाची
नाम धरा आगा बढू ।
अपनैहजलू, अपनैह तपू
अपनैहसं स्वर्ण सिंहासन गढू ।
छि रथ अहाँ मिथलेशके
से जनजनके बताउमिता ।
सागर अहिकेर पाउमे,
हिमालयके...
गजल
Posted by dinesh rasya
Posted on 12:18 AM
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गजल
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ओकरा ताकैत रही हम आ ओ ताकैत रहे हमरा ।
छुछे अपसियात रही झामर भगेल देहक चमरा ।
एक त बर्ष दिनके पाबैन उपरसं फुलवारीक भीड
फुलमे भरल सुगन्ध अनेक लौटैत देखलौ भँवरा ।
सिखल सिखायल नै देखल देखायल रुप हुन्कर
पछवरिया हावा देखैते लागल खटगर अमरा ।
बाह्र बिध्हाक...
Posted by dinesh rasya
Posted on 5:21 AM
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+++गजल+++
बीत बीत पर पाप एत, डेग डेग पर काँट छै ।बौका बन्ल लोग सब, जोरगरहेके साँठघाँट छै ।
बेलन, लेहिया औ कराही चुल्हीपर अडयौनेभुखल दुल्ही नै बिछौने ताइक रहल बाट छै ।
झुल्नी पर चिलहारैत चिल्का, सापुत नै मुहकेदु–टघार दुध लेल मायक छाती खोँट छै ।
सुलीपर...
+++गजल+++
Posted by dinesh rasya
Posted on 4:50 AM
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+++गजल+++
हमरे चिताक आइगमे अपन गहना बना लिहे ।
नेहक भिजल नोरसं अपन हृदय कना लिहे ।
हमर एके सेहन्ता खुब राज करै तू
छातीप भला राइख हमर ना जना लिहे ।
हमर सिनेह बाँतर हौ तोराले जखन,
तुलसीक गाछ रोपल हमर सारा खना लिहे ।
पागल छियौ...